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अदरक की खेती 2024 में कैसे करे।

लेखक: नीलेश शर्मा | दिनाँक: सितंबर 28, 2024

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अदरक की उन्नत खेती: एक व्यापक मार्गदर्शिका

अदरक एक लोकप्रिय मसाला फसल है जो अपने सुगंधित कंदों और औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है। भारत में, अदरक की खेती एक लाभदायक कृषि उद्यम है जो सही तरीके से किए जाने पर महत्वपूर्ण लाभ दे सकता है। यह लेख अदरक की खेती के सभी पहलुओं को कवर करते हुए एक विस्तृत मार्गदर्शिका प्रदान करता है।

1. अदरक की खेती का परिचय:

अदरक एक कंद वर्गी फसल है जो मसाले की श्रेणी में आती है। इसकी मांग बारहों महीने बनी रहती है। अदरक की बुवाई का सबसे अच्छा समय 15 अप्रैल से 15 मई के बीच माना जाता है। कर्नाटक, उड़ीसा, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और गुजरात भारत के प्रमुख अदरक उत्पादक राज्य हैं, जो कुल उत्पादन का 65% से अधिक हिस्सा रखते हैं।

2. मिट्टी की आवश्यकताएं:

अदरक अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में सबसे अच्छा उगती है, जिसका पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच हो। हालांकि यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, हल्की दोमट या पीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छे परिणाम देती है।

3. किस्म का चयन:

कुछ अनुशंसित उच्च उपज देने वाली अदरक की किस्में हैं:

  • आईआईएसआर वरदा
  • आईआईएसआर महिमा
  • सुप्रभा
  • सुरुचि
  • सुरभि

4. भूमि तैयारी और रोपण:

2 से 2.5 फीट चौड़ाई के उठे हुए बेड तैयार करें, जिनके बीच का अंतर 5 फीट हो। जल जमाव रोकने के लिए बेड की ऊंचाई लगभग 1 से 1.5 फीट रखें। 25-30 ग्राम वजन के अदरक के टुकड़े (कंद) लगाएं, पंक्तियों के बीच 45 सेमी और पौधों के बीच 10 सेमी की दूरी रखें।

5. बीज उपचार:

कवक रोगों को रोकने के लिए कंद के टुकड़ों को बाविस्टिन (कार्बेन्डाजिम) या क्लोरोथैलोनिल और मैंकोजेब के मिश्रण से उपचारित करें। रोपण से पहले उपचारित कंदों को लगभग 40 मिनट तक छाया में सुखाएं।

6. उर्वरक प्रयोग:

प्रति एकड़ 2-3 ट्रॉली अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करें। इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित उर्वरकों का उपयोग करें:

  • 30 किग्रा एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश)
  • 50 किग्रा डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट)
  • 100 किग्रा एसएसपी (सिंगल सुपर फॉस्फेट)
  • 100 किग्रा नीम केक पाउडर

7. सिंचाई:

अदरक को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से प्रारंभिक विकास चरणों के दौरान। स्प्रिंकलर सिस्टम के बजाय फरो सिंचाई या ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें। मिट्टी की नमी और वर्षा के आधार पर हर 7-10 दिनों में सिंचाई करें।

8. खरपतवार प्रबंधन:

खरपतवार नियंत्रण के लिए, रोपण के तुरंत बाद एट्राजिन (50% डब्ल्यूपी) का 40 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की दर से प्रयोग करें। पोस्ट-इमरजेंट खरपतवार नियंत्रण के लिए, जब खरपतवार 3-4 पत्तियों की अवस्था में हों, तब एजिल शाकनाशी का 30 मिली प्रति 15 लीटर पानी की दर से प्रयोग करें।

9. रोग और कीट प्रबंधन:

अदरक की खेती में आम समस्याओं में कंद सड़न, नरम सड़न, जीवाणु म्लानि, और विभिन्न कीट शामिल हैं। इस स्प्रे अनुसूची का पालन करें:

  • पहला स्प्रे: रोपण के 35-40 दिन बाद
  • दूसरा स्प्रे: 60-70 दिन बाद
  • तीसरा स्प्रे: 90-110 दिन बाद

अनुशंसित मात्रा के अनुसार कवकनाशी और कीटनाशकों का मिश्रण उपयोग करें। कंद सड़न के लिए, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (500 ग्राम) और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन सल्फेट (10 ग्राम) का मिश्रण 200 लीटर पानी में बनाकर मिट्टी में डालें।

10. फसल कटाई:

अदरक की फसल 6-7 महीनों में पकती है। जब पत्तियां पीली पड़ जाएं और सूखने लगें, तब फसल काटें। मई में लगाई गई फसल आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में तैयार हो जाती है। फसल काटने से कुछ दिन पहले सिंचाई बंद कर दें ताकि मिट्टी सूख जाए।

11. उपज और आर्थिकी:

अच्छी प्रबंधन प्रथाओं के तहत, अदरक प्रति एकड़ 100-130 क्विंटल उपज दे सकती है। खेती की लागत लगभग ₹50,000-60,000 प्रति एकड़ है। वर्तमान बाजार मूल्य ₹20-25 प्रति किलो के आसपास होने से, किसान प्रति एकड़ लगभग ₹1,00,000 का शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

12. फसल कटाई के बाद प्रबंधन:

फसल काटने के बाद, कंदों को साफ करें और ठंडे, सूखे स्थान पर भंडारित करें। बीज के उद्देश्य से, भंडारण से पहले कंदों को कवकनाशी से उपचारित करें।

उचित देखभाल और प्रबंधन के साथ अदरक की खेती एक लाभदायक उद्यम हो सकती है। इस लेख में उल्लिखित दिशानिर्देशों का पालन करके, किसान अदरक की खेती से अपनी उपज और लाभ को अधिकतम कर सकते हैं। याद रखें कि फसल पर नियमित निगरानी रखें, किसी भी रोग या कीट संक्रमण के संकेतों की जांच करें और स्वस्थ फसल सुनिश्चित करने के लिए समय पर कार्रवाई करें।

ध्यान दे :- "उपयुक्त लेख में दी गई जानकारी स्वयं के अनुभव व शैक्षणिक स्रोतो के माध्यम से प्राप्त करके प्रस्तुत की गई है"